लहरों से लड़ती लड़की

छोटे से गांव की अंजली ने जब पहली बार समंदर देखा, तो उसकी आंखें चमक उठीं।

“क्या कभी मैं भी इतने बड़े शहर में पढ़ पाऊँगी?” उसने अपनी मां से पूछा।

उसकी मां ने सिर सहलाते हुए कहा, “अगर तू ठान ले, तो हर लहर तेरे साथ बहेगी।”

अंजली का गांव, महाराष्ट्र के किनारे बसा एक मछुआरा इलाका था। वहाँ लड़कियों की पढ़ाई 8वीं के बाद बंद समझी जाती थी। लेकिन अंजली अलग थी।

सुबह मछली पकड़ने जाती, दोपहर में स्कूल, और रात को एक टिमटिमाती लाइट में पढ़ाई करती। किताबों से उसकी दोस्ती थी। हर पन्ना उसे उसके सपनों के करीब लगता।

एक दिन, गाँव में एक NGO आई, जो ग्रामीण लड़कियों को स्कॉलरशिप देती थी। अंजली ने परीक्षा दी। इंटरव्यू में उससे पूछा गया —
“तुम्हारा सपना क्या है?”

उसने बिना रुके कहा, “समंदर के पार जाना है… डॉक्टर बनकर लौटना है।”

वह चयनित हो गई। शहर की चमचमाती दुनिया में शुरू में वह खो गई। अंग्रेजी कमजोर थी, पहनावा अलग था, लेकिन उसके इरादों में कोई झिझक नहीं थी।

कई बार रोई, लेकिन कभी रुकी नहीं।

धीरे-धीरे, वही अंजली टॉपर बनी, मेडिकल में सिलेक्शन हुआ और MBBS की पढ़ाई पूरी की।

जब वह पहली बार सफेद कोट पहन कर अस्पताल गई, तो उसकी आंखों में गांव की वही लहरें तैर रही थीं — लेकिन अब वह उनसे डर नहीं रही थी, उनपर चल रही थी

आज वह अपने गांव में एक छोटा अस्पताल चला रही है। वही लोग जो कभी कहते थे, “लड़की होकर क्या करेगी?” — आज अपनी बेटियों को अंजली जैसा बनने की दुआ देते हैं।


🌸 सीख:

सपने शहरों में नहीं होते — सपने हिम्मत में होते हैं। और जब एक लड़की ठान ले, तो कोई समंदर, कोई दीवार, कोई ताना उसे रोक नहीं सकता।

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