गाँव के बाहर एक पुराना पीपल का पेड़ था। उसकी छांव में एक बूढ़े बाबा हर शाम बैठते थे। लोग कहते थे कि उन्होंने दुनिया देखी है… लेकिन कोई नहीं जानता था कि किस नजर से।
एक दिन, गाँव का एक नादान लड़का, राजू, उनके पास गया और पूछा —
“बाबा, ये दुनिया चलती कैसे है? कौन चलाता है इसे?”
बाबा मुस्कराए, अपनी लकड़ी की छड़ी को ज़मीन पर टिकाया और बोले —
“ये सवाल बड़ा है, लेकिन जवाब छोटा। चल, एक कहानी सुनाता हूँ।”
बाबा ने इशारा किया— सामने एक चींटी रोटी का टुकड़ा खींच रही थी।
“देख रहा है राजू? ये चींटी क्या कर रही है?”
“खाना ले जा रही है।”
“क्यों?”
“क्योंकि उसे भूख लगी है।”
बाबा बोले, “बिलकुल सही। अब सोच— वो रोटी वहाँ तक कैसे पहुँची? किसी ने फेंकी होगी। जिसने फेंकी, उसने क्यों फेंकी? शायद उसने खाना खाया और थोड़ा बच गया।”
“तो एक आदमी की भूख, उसका खाना बच जाना, उसका फेंक देना… और फिर एक चींटी की भूख पूरी होना — ये सब जुड़ा हुआ है।”
राजू की आँखें फैल गईं।
बाबा बोले, “ब्रह्मांड ऐसे ही चलता है, बेटे।
हर क्रिया, हर भावना, हर निर्णय—किसी न किसी को प्रभावित करता है।
कोई भगवान कहता है, कोई सिस्टम कहता है, कोई प्रकृति—लेकिन सच ये है कि दुनिया नीयत से चलती है।”
“जो बोएगा वैसा पाएगा। जो छोड़ेगा, वो किसी का सहारा बनेगा।
कभी तू मदद करेगा, कभी कोई तुझसे करेगा—यही ब्रह्मांड का नियम है।”
राजू ने धीरे से पूछा, “तो हम क्या करें बाबा?”
बाबा बोले, “बस दो बातें याद रख—
- जो तुझसे हो सके, अच्छे से कर।
- कभी मत सोच कि तेरा छोटा सा काम बेकार है।“
“क्योंकि तू जो करेगा, वही दुनिया को घुमा देगा। तू रोटी नहीं फेंकेगा, तो चींटी भूखी रहेगी।”
उस दिन से राजू बदल गया। अब वह हर काम सोच-समझकर करता। किसी को छोटा नहीं समझता। और उसे अब समझ आ गया था कि ये दुनिया किसी मशीन से नहीं — इंसानों की नीयत और कर्मों से चलती है।
🌟 सीख:
ब्रह्मांड कोई जादू नहीं है, ये हर इंसान के छोटे-छोटे फैसलों से चलता है।
तुम्हारा हर काम, हर सोच — किसी और की दुनिया बना या बिगाड़ सकती है।